लक्ष्मी स्तोत्र – इन्द्रकृत (Lakshmi Stotram By Indra)
इन्द्र उवाचऊँ नम: कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नम: ।कृष्णप्रियायै सारायै पद्मायै च नमो नम: ॥1॥पद्मपत्रेक्षणायै च पद्मास्यायै नमो नम: ।पद्मासनायै पद्मिन्यै […]
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इन्द्र उवाचऊँ नम: कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नम: ।कृष्णप्रियायै सारायै पद्मायै च नमो नम: ॥1॥पद्मपत्रेक्षणायै च पद्मास्यायै नमो नम: ।पद्मासनायै पद्मिन्यै […]
श्री महालक्ष्म्यष्टकम् इंद्र देव द्वारा माता महालक्ष्मी की भक्तिपूर्ण स्तुति है, जिसे पद्म पुराण मे समायोजित किया गया है। श्री
धन प्राप्ति के लिए लोग प्रायः दीवाली, अक्षय तृतीया तथा नियमित पाठ के लिए शुक्रवार के दिन कनकधारा स्तोत्रम् का
श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र मे देवी महालक्ष्मी को आठ रूपों में पूजा जाता है। देवी महालक्ष्मी के इन रूपों को हम
मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं एं मनसा दैव्ये स्वाहा॥ चालीसा मनसा माँ नागेश्वरी, कष्ट हरन सुखधाम।चिंताग्रस्त हर जीव के, सिद्ध
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।तेरे
ॐ जय जगदीश हरेस्वामी, जय जगदीश हरेभक्त जनों के संकटदास जनों के संकटक्षण में दूर करेॐ जय जगदीश हरे (ॐ
गरीबी सता रही है, घर में दरिद्रता है या किसी भी प्रकार धन की तंगी से परेशान हैं तो शिवजी
ॐ शिवाय नमः ॥ॐ महेश्वराय नमः ॥ॐ शंभवे नमः ॥ॐ पिनाकिने नमः ॥ॐ शशिशेखराय नमः ॥ॐ वामदेवाय नमः ॥ॐ विरूपाक्षाय
विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणायकणामृताय शशिशेखरधारणाय ।कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधरायदारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥१॥गौरीप्रियाय रजनीशकलाधरायकालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।गंगाधराय गजराजविमर्दनायदारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥२॥ भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहायउग्राय
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमोदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते ।गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि शम्भुविलासिनि विष्णुनुते।भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृतेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि[१] शैलसुते ॥१॥ सुरवर वर्षिणि
॥ दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र ॥ विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय।कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥1॥ गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय।गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय
यह अष्टक आद्य शंकराचार्य द्वारा लिखा गया है जो कि स्वयं शिव के अवतार माने जाते हैं। संस्कृत में लिंग
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥ देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥ सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम।चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।१। तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम।यस्या हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।२। अश्वपूर्वां