“ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ ˜त्र्यंबकंयजामहे ऊँ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ऊँ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम
ऊँ भर्गोदेवस्य धीमहि ऊँ उर्वारूकमिव बंधनान ऊँ धियो योन: प्रचोदयात
ऊँ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ऊँ स्व: ऊँ भुव: ऊँ भू: ऊँ स: ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ”
इस मंत्र के जाप से व्यक्ति को पुनर्जीवित करने की बात की जाती है। चिरकाल में दानवों ने देवताओं के दूत कूच का वध कर दिया। इसके बाद शुक्राचार्य ने संजीवनी विद्या के माध्यम से कूच को पुनर्जीवित कर दिया। कालांतर में कूच ने यह विद्या देवताओं को सीखा दिया।
जब आप गरुड़ पुराण ग्रंथ को पढ़ेंगे तो आपको इसमें वर्णित संजीवनी विद्या के बारे में पता चलेगा. गरुड़ पुराण में ‘संजीवनी विद्या’ से मृत व्यक्ति को फिर से जीवित करने की बात कही गई है.कहा जाता है कि गुरु शुक्राचार्य के पास यही विद्या थी, जिससे उन्होंने कई मृत दैत्यों को पुन:जीवित किया था. इसी मंत्र से शुक्राचार्य युद्ध में घायल सैनिकों को भी ठीक कर देते थे.
क्या है यह संजीवनी मंत्र
गरुड़ पुराण में संजीवनी विद्या से जुड़े मंत्र को लेकर कहा गया है, इस मंत्र से मृत व्यक्ति को जीवित किया जा सकता है. लेकिन मंत्र का सिद्ध होना जरूरी होता है.
सिद्ध करके यदि इस मंत्र को मृत व्यक्ति के कान में बोला जाए तो उसके प्राण पुन: वापस आ जाते हैं. गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मंत्र सिद्धि के बाद, दशांश हवन और ब्राह्मण भोज भी कराना जरूरी होता है.
यह संजीवनी मंत्र है- यक्षि ओम उं स्वाहा।
शुक्राचार्य कौन थे
शुक्राचार्य की गिनती सबसे बड़े ऋषि मुनियों में होती है। इसके बावजूद स्वर्ग के देवता उन्हें मान-सम्मान नहीं देते थे, जिससे शुक्राचार्य के मान को बहुत ठेस पहुंचा। इसके पश्चात, उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि वे देवताओं को इस भूल के लिए जरूर सबक सिखाएगें। इसके लिए शुक्राचार्य ने शिव जी की कठिन तपस्या की। शुक्राचार्य की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें संजीवनी मंत्र का वरदान दिया। इस वरदान की शक्ति से वह दानवों का गुरु बन गए। कालांतर में उन्होंने कई दानवों को अपनी संजीवनी मंत्र शक्ति से पुनर्जीवित कर दिया। ऐसा माना जाता है कि शुक्राचार्य पाताल लोक के निवासी थे। उन्होंने अपने तपोबल से राजा बलि को भी पुनर्जीवित कर दिया था। कालांतर में शुक्राचार्य पाताल लोक के राजा बने।